फिशर सामान्य परिचय :-
सामान्यतया: रोगी के द्वारा गुदा या मल द्वार से संबधित सभी रोगों को बवासीर या पाइल्स ही समझ लिया जाता है, लेकिन ये जरूरी नहीं है कि मल द्वार से संबंधित रोग पाइल्स ही हो इसमें कई और रोग भी हो सकते हैं। जिन्हें हम पाइल्स समझते हैं। फिशर जिसे आयुर्वेद में गुदचीर या गुद परिकर्तिका भी कहते हैं। इस रोग में गुदा द्वार पर एक चीरे या क्रैक जैसी स्थिति बन जाती है, जिसे फिशर कहते हैं। गुदा या मल द्वार पर कट लगने से कैंची से काटने सी पीडा. होना ही गुद परिकर्तिका कहलाता हैं |
फिशर होने के कारण : –
फिशर होने का मूल कारण मल का कठोर होना या कब्ज़ का होना है। जिन लोगों में कब्ज़ की समस्या होती है, उनका मल कठोर हो जाता है, जब यह कठोर मल गुदा से निकलता है तो यह चीरा या जख्म बनाता हुआ निकलता है।
इसके अलावा विभिन्न रोगियो पर किये गये अनुसंधान से ये पता चला हैं कि फिशर होने का एक प्रमुख कारण अत्यधिक समय तक दुपहिया वाहन चलाना या उसकी सवारी करना भी होता हैं।
फिशर के बहुत से अन्य कारण-
- मलबद्धता या कब्ज़
- मल पतला करने वाली दवाइयों का अधिक समय तक उपयोग
- मलद्वार के स्फिंक्टर (Sphincter) का संकोच / कड़ापन
- अधिक मात्रा में दस्त या पेचिस
- अत्यधिक तनाव
- Proctocolitis
- Crohn’s disease
फिशर के लक्षण:-
फिशर से पीड़ित रोगी को टॉयलेट जाते समय गुदा द्वार/ मलद्वार में बहुत अधिक असहनीय दर्द होता है, यह दर्द ऐसा होता है जैसे किसी ने काट दिया हो, और यह दर्द काफी देर तक (2-4 घंटों) बना रहता है। कभी कभी तो पूरे दिन ही रोगी दर्द से परेशान रहता है। इस रोग के बढ़ जाने पर रोगी को बैठना भी मुश्किल हो जाता है। दर्द के कारण इससे पीड़ित रोगी टॉयलेट जाने से डरने लगता है। कभी कभी गुदा में बहुत अधिक जलन होती है, जो कि कई बार तो टॉयलेट जाने के 4-5 घंटे तक बनी रहती है। गुदा में कभी कभी खुजली (itching)भी रहती है।
फिशर के 1 साल से अधिक पुराना होने पर गुदा के ऊपर या नीचे या दोनों तरफ सूजन या उभार सा बन जाता है, जो एक मस्से या जैसे खाल लटक जाती है, ऐसा महसूस होता है। इसे बादी बवासीर या सेंटीनेल टैग कहते हैं। इसको स्थायी रूप से हटाने के लिए सर्जरी या क्षार सूत्र चिकित्सा की जरुरत होती है. यह दवाओं से समाप्त नहीं होता।टॉयलेट के समय खून कभी कभी बहुत थोडा सा आता है या आता ही नहीं है। यह खून सख्त मल (लेट्रीन) पर लकीर की तरह या कभी कभी बूंदों के रूप में हो सकता है।
1. कैंची से काटने जैसी वेदना या दर्द
2. मलत्याग/ लैट्रिन के साथ या उसके बाद जलन / दाह
3. गुदद्वार से खून आना
4. गुदा के आसपास सूजन
5. गुदा के आसपास खुजली
यही फिशर उचित चिकित्सा के अभाव में आगे जाकर दूषित/ Infection हो जाता है और बाद में Blind Internal Fistula in Ano या भगन्दर बन जाता हैं
किसे होती है फिशर होने की अधिक संभावना?
फिशर की बीमारी पुरुष, बच्चों, वृद्ध,स्त्री या युवा किसी भी ऐसे व्यक्ति को हो सकती है, जिसे कब्ज़ रहती हो या मल कठिनाई से निकलता हो या जो अत्यधिक देर तक दुपहिया वाहन की सवारी करते हो।
ज़्यादातर निम्न लोगों को ये बीमारी होने की संभावना ज्यादा होती हैं-
1. ऐसे लोग जिन्हें बाजार का जंक फूड जैसे पिज्जा, बर्गर, नॉन वेज, अत्यधिक मिर्च-मसाले वाला भोजन खाने का शौक होता है
2. जो पानी कम पीते हैं
3. जो ज़्यादातर समय बैठे रहते हैं
4. और किसी भी प्रकार का शारीरिक श्रम नहीं करते
5. महिलाओं मे गर्भावस्था के समय कब्ज़ हो जाती है जिससे, फिशर या पाईल्स हो सकते हैं।
सामान्यतः महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा फिशर अधिक होता है।
फिशर से बचने के उपाय-
चूंकि फिशर होने का मूल कारण कब्ज़ व मल का सख्त होना होता है। अतः इससे बचने के लिए हमें भोजन संबंधी आदतों में ऐसे कुछ बदलाव करने होंगे जिससे पेट साफ रहे व कब्ज़ ना हो।
जैसे: – भोजन में फलों का सेवन सलाद व सब्जियों का प्रचुर मात्रा में नियमित सेवन करना पानी और द्रवों का अधिक मात्रा में सेवन करना हल्के व्यायाम, शारीरिक श्रम, मॉर्निंग वॉक आदि का करना छाछ (मट्ठे) और दही का नियमित सेवन करना अत्यधिक मिर्च, मसाले, जंक फूड, मांसाहार का परहेज करना लगातार दुपहिया वाहन की सवारी से बचना चाइए |
फिशर का आयुर्वेदिक उपचार-
फिशर की तीव्र अवस्था में जब फिशर हुए ज्यादा समय न हुआ हो और कोई मस्सा या टैग न हो तो आयुर्वेदिक शास्त्रीय औषधि चिकित्सा से काफी लाभ मिल सकता है. साथ साथ यदि गुनगुने पानी में बैठकर सिकाई भी की जाए और खाने- पीने का ध्यान रखा जाये तो फिशर पूरी तरह से ठीक भी हो सकता है
पुराने फिशर में यदि सूखा मस्सा या सेंटिनल टैग फिशर के जख्म के ऊपर बन जाता है तो उसे हटाना आवश्यक होता है. तभी फिशर पूरी तरह से ठीक हो पाता है. टैग को हटाने के लिए उसे क्षार सूत्र से बांधकर छोड़ देते हैं, 5 -7 दिनों में टैग अपने आप कटकर निकल जाता है |
इस लेख को ध्यान से पढ़ने के लिए धन्यवाद ! आशा है आप इसे पढ़कर अवश्य लाभान्वित होंगे. अगर आप चाहते हो की ज्यादा से ज्यादा लोग इससे लाभान्वित हो सके तो इसे ज्यादा से ज्यादा ग्रुप में शेयर करे. यदि आपके मन में कोई शंका या प्रश्न है तो प्रोक्टोहील क्लिनिक में सम्पर्क करे या वाट्सप नं. 7619873755 पर भी उपर्युक्त जानकारी ले सकते हैं इसके अलावा अन्य किसी भी प्रकार के गुदागत रोग जैसे-
▶ FISTULA IN ANO. (भगन्दर )
▶ PILES (बवासीर/ मस्सा )
▶ PILONIDAL SINUS (नाडी व्रण / नासूर/ रीड की हड्डी के पास नासूर)
▶ ANAL WARTS
▶ ANAL STENOSIS
▶ PERIANAL ABSCESS
इन सभी में क्षार सूत्र चिकित्सा पद्धति बहुत ही उपयोगी सिद्ध हो रही हैं।